Friday, August 26, 2016

दिल्ली : दो बच्चियों को घर में बंद कर छोड़ गया पिता, हफ्तेभर भूखी-प्यासी तड़पती रहीं


नई दिल्ली: दिल्ली से एक बार फिर दिल दहला देने वाली ख़बर आई है. एक माता-पिता अपनी दो बच्चियों को घर में बंदकर छोड़ कर चले गए. दिल्ली के समयपुर बादली इलाके में दो बहनें हफ्तेभर तक भूखी प्यासी तड़पती रहीं. जब घर से बदबू आने लगी तो पड़ोसियों को पता चला और उन्होंने पुलिस को जानकारी दी.


पुलिस ने जब दरवाजा खोला तो बच्चियां एक टूटी चारपाई पर एक-दूसरे का हाथ थामे बेसुध हालत में पड़ी हुई थीं. कमरे में घुटन हो रही थी. हवा का साधन भी नहीं था और मक्खी मच्छर फैले हुए थे. खाने-पीने का भी कोई साधन नहीं था.

बच्चियों की उम्र आठ और तीन साल है। सड़ने गलने से इंफेक्शन ब्रेन तक पहुंच चुका है. गंभीर हालत में उन्हें अस्पताल में भर्ती कराया गया और चार दिन के स्पेशल ट्रीटमेंट के बाद अब बच्चियों की हालत में थोड़ा सुधार हुआ है. पता चला है कि इनकी मां बेटे को लेकर दो महीने पहले ही घर छोड़कर चली गई है और पिता शराबी है, जो 15 अगस्त से घर नहीं लौटा है. समयपुर बादली थाने के स्टाफ ने पैसे इकट्ठे कर बच्चियों को खाना और कपड़े दिए.
http://khabar.ndtv.com/news/india/delhi-daughters-left-by-parents-1450649?pfrom=home-wap_khabar2015_anyabadikhabar

Tuesday, August 9, 2016

रैली के लिए स्कूल बस लगाने से नाराज़ बच्चे ने लिखी पीएम को चिट्ठी, 'क्या मेरे स्कूल से ज़्यादा ज़रूरी है आपकी सभा'

खंडवा: मध्य प्रदेश में मंगलवार को होने जा रही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की रैली के लिए प्रशासन ने बसों का इंतज़ाम किया, लेकिन उसकी वजह से आठवीं क्लास में पढ़ने वाला देवांश जैन स्कूल नहीं जा पाया, सो, उसने नाराज़गी में सीधे पीएम को ही चिट्ठी लिखकर सवाल दाग दिया, "क्या आपकी सभा मेरे स्कूल से ज़्यादा महत्वपूर्ण है...?"


देवांश जैन के यह भावुक खत सोशल मीडिया पर वायरल हो गया, और इसी का परिणाम है कि प्रशासन ने स्कूलों को प्रधानमंत्री के कार्यक्रम की खातिर अपनी बसें भेजने के लिए दिया गया आदेश वापस ले लिया. (देवांश की चिट्ठी समाचार के अंत में पढ़ें)

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी मंगलवार को क्रांतिकारी स्वतंत्रता सेनानी चंद्रशेखर आज़ाद की जन्मभूमि भाबरा गांव जाएंगे, और उसके बाद स्वतंत्रता दिवस के उपलक्ष्य में चलाए जाने वाले '70 साल आज़ादी, याद करो कुर्बानी' अभियान को लॉन्च करेंगे.

देवांश उस वक्त काफी उदास हो गया था, जब उसके टीचर ने उसे बताया कि स्कूल मंगलवार और बुधवार को बंद रहेगा, क्योंकि स्कूल की बसें अलीराजपुर में होने जा रहे प्रधानमंत्री के कार्यक्रम में शामिल लोगों को लाने-ले जाने के लिए इस्तेमाल की जाएंगी.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को लिखी चिट्ठी में देवांश ने लिखा, "मैंने अमेरिका में आपके दिए भाषणों को सुना है, जहां ढेरों लोग मौजूद थे, लेकिन वे वहां स्कूलों की बसों में बैठकर नहीं आए थे..."

उसने अपनी नाराज़गी का इज़हार करते हुए खुद को 'मोदी का प्रशंसक' भी बताया और कहा कि वह रेडियो पर उनके 'मन की बात' कार्यक्रम को हमेशा सुनता है, और इसी कार्यक्रम को लेकर जब एक सहपाठी ने उसका मज़ाक उड़ाया था, तो उसने झगड़ा भी किया था.

देवांश जैन ने प्रधानमंत्री से अनुरोध किया कि 'शिवराज मामा' (दरअसल मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान खुद को यही कहलाना पसंद करते हैं) से कहिए, वह स्कूल बसों को ऐसे कार्यक्रमों के लिए इस्तेमाल नहीं किया करें, क्योंकि "आप कांग्रेस के नेताओं जैसे नहीं हैं, और आपके मन में भविष्य और शिक्षा को लेकर चिंता रहती है..."

उसने लिखा, "अगर आप ऐसा करते हैं, तो मैं ताल ठोककर कह सकूंगा कि 'मेरे मोदी अंकल' की रैलियों में भीड़ अपने आप जुटती है, और उसे जुटाया नहीं जाता..."


http://khabar.ndtv.com/news/india/upset-over-school-buses-for-rally-boy-wrote-to-pm-heres-what-happened-1441960?pfrom=home-topstories

Saturday, August 6, 2016

अमेरिकी राष्ट्रपति अोबामा की बेटी का यह काम जानकर चौक जाएंगे आप


वॉशिंगटन। अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा की छोटी बेटी साशा ओबामा इन दिनों वाइट हाउस का ऐशो-आराम छोड़कर एक रेस्तरां में काम कर रही हैं।15 साल का साशा इस रेस्तरा में फूड सर्व करने का काम कर रही हैं। मैसाचुसेट्स के मार्थाज वाइनयार्ड में स्थित नैन्सी नाम का यह रेस्तरां अपने लजीज सीफूड्स के लिए काफी मशहूर है।

बॉस्टन हेरल्ड की रिपोर्ट के मुताबिक नैन्सी रेस्तरां में साशा सुबह की शिफ्ट में 4 घंटे काम करती हैं और इस दौरान वह रेस्तरां की यूनिफॉर्म, ब्लू टी-शर्ट और खाकी ट्राउजर, पहने नजर आती हैं। साशा की एक तस्वीर भी सामने आई है जिसमें वह वह कम्प्यूटर में कस्टमर्स के ऑर्डर फीड करते हुए दिख रही हैं। काउंटर पर काम करने के अलावा साशा वेट्रेस का भी काम करती हैं और साथ ही रेस्तरां की लंचटाइम ओपनिंग में भी मदद करती हैं।इस रेस्तरां में काम करते हुए भी साशा की सुरक्षा की पूरी व्यवस्था की गई हैl


वहां उनकी सुरक्षा में अमेरिकी सीक्रिट सर्विस के 6 एजेंट्स भी उनकी सुरक्षा में हर पल तैनात रहते हैं। इस रिपोर्ट पर वाइट हाउस ने तो कोई टिप्पणी नहीं की लेकिन साशा की मां मिशेल ओबामा ने जरूर कहा कि वह अपनी बेटियों को एक नॉर्मल लाइफ देने की भरपूर कोशिश करती हैं।
http://m.jagran.com/news/world-barack-obama-daughter-sasha-is-working-in-a-restaurant-14455791.html?src=ctr

जन्म देती हुई इन महिलाओं की ये 16 तस्वीरें देख कर आप कहेंगे, 'ऐ ज़िन्दगी गले लगा ले'

Thursday, August 4, 2016

पुत्रमोह में धृतराष्ट्र बन रहीं मुख्यमंत्री...ये भी इमरजेंसी है...गुलाब कोठारी की कलम से

गुलाब कोठारी

मंगलवार को लोकसभा में मध्यप्रदेश से कांग्रेस सांसद कांतिलाल भूरिया ने केन्द्र सरकार सहित कई राज्य सरकारों द्वारा राजस्थान पत्रिका समूह के सरकारी विज्ञापनों पर रोक लगाने का मामला उठाने की आज्ञा मांगी। लोकसभा अध्यक्ष सुमित्रा महाजन ने स्वीकृति नहीं दी। आसन की स्वीकृति नहीं मिलने पर कागज सदन के पटल पर रख दिया गया। भूरिया का कहना था कि मीडिया पर अंकुश लगाना लोकतंत्र के लिए खतरनाक है। मामला टेबल पर रखे जाने के बाद सरकार को बताना चाहिए कि राजस्थान पत्रिका समूह ने ऐसा क्या किया कि यह नौबत आई। सरकारों ने कब-कब पत्रिका को चेतावनी पत्र लिखे, क्या-क्या कारण दिए तथा कब (सूचना प्रसारण विभाग) विज्ञापन बंद करने के नोटिस जारी किए। पत्रिका द्वारा जारी पत्रावली भी सदन के बीच आनी चाहिए। इन सबके बिना तो दोनों-तीनों सरकारों को मानना पड़ेगा कि लोकतंत्र में उनका विश्वास ही नहीं है।


पिछले आम चुनावों में सबको विश्वास हो गया था कि 'अच्छे दिन' आने वाले हैं। सरकारें बन जाने के बाद सुषमा स्वराज, शिवराज सिंह और वसुंधरा राजे के विरुद्ध चले घटनाक्रम से वातावरण ऐसा गहराया कि मानो वे तुरंत जाने वाले हैं। राजनीति में सबके पांव कमजोर होते हैं। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने इनसे कुछ न कुछ समझौते तो कर लिए, किंतु लगता है इनके सिर पर तलवार भी लटका दी। आज हमारी मुख्यमंत्री को यह तो स्पष्ट है कि भाजपा उनको फिर से मुख्यमंत्री नहीं बनाएगी। अत: वे खुद तो सात पीढिय़ों की चिंता में व्यस्त हैं। हर भ्रष्ट अधिकारी को बचाती जा रही हैं। पिछले ढाई वर्षों में राज्य में बड़े-बड़े राष्ट्रीय स्तर और व्यक्तिगत स्तर के दलाल पैदा हो गए। उनमें से कई जेल तक पहुंच गए। सरकार उनके साथ व्यस्त होकर जनता को भूल गई। 


उच्च न्यायालय और उच्चतम न्यायालय के आदेश मानो मनोरंजन का विषय बनकर रह गए। राज्य की ही भ्रष्टाचार निरोधक एजेंसियां रोज जिस तरह की धरपकड़ कर रही हैं, उससे लगता है कि जैसे यहां लूट-खसोट और बंदरबाट के अलावा कुछ हो ही नहीं रहा। पत्रिका जब ऐसे समाचार प्रकाशित करता है तो सरकार के अहंकार को ठेस लगती है। समाचार मनगढ़ंत नहीं होता,  ब्लैकमेल कभी किया ही नहीं जाता। बस, सरकार के विरुद्ध क्यों छपा? मानो राजाओं का राज लौट आया हो। मीडिया की स्वतंत्रता एवं अभिव्यक्ति का अधिकार राजस्थान पत्रिका के लिए आज उपलब्ध नहीं है। हां, सरकार अपने अधिकारों का दुरुपयोग करने के लिए स्वतंत्र है। एक मात्र राह का रोड़ा है राजस्थान पत्रिका जो सारे कारनामों को जनता तक पहुंचा देता है। उसका मुंह बंद करना तो अनिवार्य हो गया था। 

सत्ता में इसका एक ही उपाय होता है- विज्ञापन बंद कर दो। मानो अगले का भाग्य बदल जाएगा। अब तो यह चर्चा भी चल पड़ी है कि आजादी के बाद इतनी भ्रष्ट सरकार प्रदेश में नहीं आई। आज पूरा राजस्थान त्राहि-त्राहि कर रहा है। चाहे बोले कोई नहीं पर भाजपा के मंत्री, सांसद, विधायक सब दु:खी हैं। क्योंकि पिछले ढाई साल में कोई भी योजना नीचे तक नहीं पहुंची है। सब अपने राजनीतिक भविष्य को लेकर आशंकित हैं। स्वयं मुख्यमंत्री का विधानसभा क्षेत्र रो रहा है किन्तु इनकी गतिविधियों पर किसी भी प्रकार का प्रभाव नहीं पड़ा। न दिल्ली कुछ रोक रहा है। न पत्रिका को ही खरीद पाए। न पत्रिका ने कुछ मांगा ही। यह तो पद का अहंकार ही है। जिनसे हर संकट में मदद मांगी जाती थी, स्वार्थवश उन पर ही गोलियां चलाई जा रही हैं।

पत्रिका अपना कार्य अपने सिद्धान्तों से करता आ रहा है। आगे भी जनहित में करता रहेगा। कहीं कोई दाग धब्बा नहीं। यह बात सरकार के अहंकार को मंजूर नहीं। उन्हें तो हर मीडिया अपने अंगूठे के नीचे चाहिए। दिल्ली में भी भाजपा की ही सरकार है। इनकी बिरादरी के लोग ही बैठे हैं। एक फोन से डीएवीपी के केन्द्रीय सरकार के विज्ञापनों पर भी रोक लगा दी। पाठकों को याद होगा कि इमरजेंसी में भी पत्रिका को कांग्रेस विरोधी मानकर तत्कालीन सूचना एवं प्रसारण मंत्री विद्याचरण शुक्ल फोन पर धमकियां देते रहते थे। कलेक्टर कार्यालय ने सेन्सरशिप बनाए रखने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ी थी, किन्तु तब भी हमारे सरकारी विज्ञापन बंद नहीं हुए थे। 

आश्चर्य है कि बिना किसी सूचना के आज 'अच्छे दिनों' में भी बंद हैं। क्या यह इमर्जेंसी से भी बड़ा तानाशाही का संकेत नहीं हैं? हमारी मुख्यमंत्री तो बराबर कहती हैं कि वे तो अपनी दिवंगत माता विजयराजे सिंधिया के पदचिन्हों पर चलती हैं। वे भी स्वर्ग से देख रहीं होंगी कि किस-किस के दबाव में सीएम क्या-क्या गलत निर्णय कर रही हैं। आज भाजपा में मुख्य चर्चा यह है कि, मुख्यमंत्री का पुत्र मोह भयंकर रूप से जाग्रत है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने दुष्यंत सिंह को केन्द्रीय मंत्रिमण्डल में लेने से मना कर दिया था। अब मुख्यमंत्री उसे राजस्थान का मुख्यमंत्री बनाने के सपने देख रही हैं। पहले यह तो उनको समझ लेना चाहिए कि वह अपने क्षेत्र में जीत भी पाएंगे या नहीं। आज तो भाजपा के साथ सहयोगी वातावरण भी नहीं है। सरकार ऐसे ही चली तो भाजपा निपट भी सकती है। जनता केवल उनके पुत्र पर मेहरबान होगी यह विचारणीय प्रश्र है। 

विभिन्न भाजपा सरकारों ने हमारे समाचारों से नाराज होकर क्रमबद्ध तरीके से, मानो योजनाबद्ध ढंग से, विज्ञापन बंद किए। सबसे पहले छत्तीसगढ़ सरकार ने पत्रिका पर हमला बोला। इस बीच मध्य प्रदेश में हमारे 'अच्छे दिन' आए। बाद में विज्ञापन तो चालू हो गए फाइलें नहीं चली आगे। राजस्थान तो एकदम आक्रामक ही दिखाई दिया। करीब आठ माह हो गए, उसे राजस्थान पत्रिका के विज्ञापन बंद किए हुए। मुंबई की एक विज्ञापन एजेंसी ने तो बताया कि स्वयं मुख्यमंत्री कार्यालय ने हमको विज्ञापन जारी करने से मना किया है। दिल्ली में इन्हीं के सांसद राज्यवद्र्धन सिंह, सूचना एवं प्रसारण विभाग में राज्य मंत्री हैं। क्या नहीं कराया जा सकता? अब यह तो उम्मीद नहीं कि इस सरकार के रहते अच्छे दिन आएंगे। हम तो हमेशा की तरह अपने पाठकों के बूते अपना कुछ सामान बेचकर भी अगले ढाई साल गुजार लेंगे, किंतु क्या इसी वातावरण के रहते भाजपा सत्ता तक पहुंच पाएगी अगले चुनावों में? और तब क्या दुष्यंत ही नए मुख्यमंत्री होंगे? पुत्र मोह में धृतराष्ट्र बनने से अच्छा है मुख्यमंत्री समय रहते अहंकार छोड़कर जनता की सुध लेना शुरू करें। शायद ईश्वर आपकी सुन ले!