जबलपुर। अब तक
आपने एक से बढ़कर एक धार्मिक स्थल, कलाकृतियां और
ऐतिहासिक धरोहरें देखी होंगी। लेकिन शायद ही किसी ऐसे स्थान को देखा हो, जिसे एक बुजुर्ग महिला ने चक्की में आटा पीसकर
बनवाया है। उस तपस्वी महिला की अनुकृति आज भी यहां देखी जा सकती है। यह स्थान अपने
आप में जितना अद्भुत है उतना ही आकर्षक भी...
वृद्धा की अनुकृति
एक विशाल प्रवेश द्वार के ऊपर चक्की के पाटों में
पिसाई करती वृद्धा की अनुकृति सभी को आकर्षण में बांध लेती है। दरअसल, यहीं हैं पिसनहारी माता, इन्हीं के नाम से पूरा क्षेत्र पहचाना जा रहा है।
जानकार मानते हैं कि पिसनहारी माता चक्की में आटा पीसकर उदर-पोषण करती थीं। जो
राशि बचती थी, उससे राहगीरों को भोजना करा देती थीं। परमार्थ ही
उनके जीवन का लक्ष्य था।
नंदीश्वर दीप यूं तो संस्कारधानी में अनेक
जैन मंदिर हैं, लेकिन पिसनहारी की मढिय़ा का आकर्षण कुछ अलग है। पेड़ों की
झुरमुटों के बीच मंदिर परिसर पर भगवान बाहुबली की 55 फीट ऊंची पाषाढ़ प्रतिमा स्थिरता
व शांति का संदेश देती नजर आती है। वहीं 15000 वर्गफीट के व्यास और 11 सौ
फीट ऊंचाई वाले नंदीश्वर द्वीप में भगवान शांतिनाथ एवं चंद्रप्रभु की खड्गासन
प्रतिमाओं के साथ विराजित 132 प्रतिमाएं इसकी भव्यता को और
बढ़ा देती हैं, जिसके आगे हर सिर श्रद्धा से झुक जाता है।
प्रात: व सायंकाल में वर्णी
गुरुकुल से आतीं वेदपाठों की ऋचाएं माहौल में सम्मोहन घोल देती हैं। अद्भुत
शिलालेखपिसनहारी मढिय़ा पर कुछ शिलालेख भी हैं, जिन्हें पढ़ पाना आज तक संभव
नहीं हो पाया। विद्वानों का मत है कि शिलालेख 14 वीं शताब्दी के आसपास के हैं, जो
इस बात का प्रमाण है कि पिसनहारी मढिय़ा क्षेत्र एतिहासिक है। मदनमहल का किला इसी
पहाड़ी पर स्थित है, जो गोंड राजाओं के शौर्य की
गाथा सुनाता नजर आता है।
करीब 600 वर्ष
पूर्व एक तपस्वी उनके पास पहुंचे। उनके उपदेशों से प्रभावित होकर वृद्धा ने एक
मंदिर बनवाने का संकल्प किया। दिन-रात पिसाई करके पूंजी जुटाई और मंदिर का सपना
साकार किया। कालांतर में श्रद्धालुओं ने उनकी प्रतिमा यहां स्थापित करा दी। पाषाण
की चक्कियों के माध्यम से श्रम साधना और संकल्प के विकल्प का संदेश देती माता
पिसनहारी की अनुकृति लोगों को अभिभूत कर देती है।
www.facebook.com/WeAreJain
http://www.patrika.com/news/jabalpur/an-amazing-jain-temple-the-pisanhari-madhiya-1469624/?utm_source=Facebook&utm_medium=Social
No comments:
Post a Comment