Friday, May 17, 2019

गांधी की संतानों से डरती हैं गोडसे की औलादें



प्रज्ञा ठाकुर को भले पार्टी के दबाव में माफ़ी मांगनी पड़ी, लेकिन उनकी यह बात सौ फ़ीसदी सही है कि एक ख़ास विचारधारा के तहत गोडसे देशभक्त था- उसकी नज़र में  देश की जो परिभाषा थी, उससे वह पूजा करता था. उसकी गांधी जी से कोई निजी दुश्मनी नहीं थी. उसको आरएसएस या हिंदू महासभा ने जो कुछ सिखाया, उस पर उसने पूरी तरह अमल किया. संकट यह है कि आज जो आरएसएस या उससे जुड़े संगठन हैं, उनको अपनी वैचारिकता का भरोसा ही नहीं, इसलिए वे गोडसे की तरह गांधी को सामने से गोली नहीं मारते, पीछे-पीछे उनका वध करते हैं. वे विचार नहीं, विचारों की पोशाक लेकर चलते हैं- गांधी के स्कूल में पहुंचे तो गांधी की पोशाक डाल ली, अंबेडकर के स्कूल में पहुंचे तो अंबेडकर का लबादा ओढ़ लिया. लेकिन गोडसे लबादों वाला आदमी नहीं था. उसने सीधे-सीधे एक पिस्तौल ख़रीदी, अपने गुरुओं का स्मरण किया और गांधी को गोली मार दी.
गांधी जी अगर गोडसे की गोली खाकर भी जीवित रह गए होते तो मानते कि गोडसे देशभक्त था. बस उसे यह समझाने की कोशिश करते कि जिसे वह देश समझता है, वह देश नहीं है, जिसे वह धर्म समझता है, वह धर्म नहीं है. प्रज्ञा ठाकुर ख़ुद को साध्वी कहने के बावजूद इतनी समझ नहीं रखतीं कि गोडसे के बारे में ऐसा कोई बचाव कर सकें. वे यह भी नहीं देख पातीं कि जिस बीजेपी ने उनसे माफी मंगवाई, वह ख़ुद भी रोज़ गांधी को किसी न किसी तरीक़े से मारना चाहती है.
आज ही बीजेपी के एक क्षेत्रीय प्रवक्ता ने कहा कि गांधी पाकिस्तान के राष्ट्रपिता हैं. बीजेपी ने उन्हें बाहर कर दिया. दिलचस्प यह है कि यह सोच संघ परिवार के भीतर अरसे से मौजूद रही है. लेकिन शायद अनुशासित संघ परिवार में एक नियम यह चलता है कि आप जो सोचते हैं, वह सार्वजनिक तौर पर स्वीकार नहीं करते. गोडसे की शिकायत ही यही थी कि गांधी पाकिस्तान का पक्ष लेते हैं.

कई गांधी विरोधी यह सवाल पूछते पाए जाते हैं कि गांधी को हम राष्ट्रपिता क्यों कहें? भारत गांधी के पैदा होने के सदियों पहले से एक देश रहा है. उसे किसी बापू ने जन्म नहीं दिया. पहली दृष्टि में यह तर्क सही लगता है. लेकिन गांधी को किसने राष्ट्रपिता या बापू का दर्जा दिया? क्या गांधी ने अपने लिए यह दर्जा मांगा था? दरअसल गांधी के विरोधी माने जाने वाले सुभाष चंद्र बोस ने गांधी को पहली बार राष्ट्रपिता कहा था- यह 1944 की बात थी. तब जर्मनी में बैठे सुभाषचंद्र बोस को क्यों लगा कि महात्मा गांधी (महात्मा का दर्जा उन्हें रवींद्रनाथ टैगोर ने दिया था) को राष्ट्रपिता कहा जाना चाहिए.
क्योंकि सुभाष चंद्र बोस यह देख पा रहे थे कि पुराने राग-द्वेषों, पुरानी चौहद्दियों, पुरानी रियासतों और पुराने रजवाड़ों को पीछे छोड़कर, परंपरा की बहुत सारी जकड़नों को झटक कर- आज़ादी की लड़ाई की कोख से जो एक नया भारत निकल रहा है. उसे दरअसल महात्मा गांधी आकार दे रहे थे. और यह काम वे अकेले नहीं कर रहे थे- इसमें वे पूरे राष्ट्र की सर्वानुमति को साथ लेकर चल रहे थे. जब यह सर्वानुमति उन्हें अपने ख़िलाफ़ लगी तो वे किनारे और अकेले खड़े हो गए, देश दिल्ली में आज़ादी का जश्न मनाता रहा, वे बंगाल में दंगे रोकने में लगे रहे. और जिस उन्माद में देश ने उन्हें अकेला छोड़ा, उसी उन्माद ने उनकी हत्या कर दी.
दरअसल गांधी की हत्या भी यह याद दिलाने वाली मार्मिक घटना थी कि नए बनते देश ने अपना पिता खो दिया है. 30 जनवरी 1947 की रात जितने घरों में चूल्हा नहीं जला, जितने घरों में आंसू नहीं सूखे, उनको गिन लीजिए तो आप पाएंगे कि ऐसा शोक, ऐसा रुदन सिर्फ़ पिता की मृत्यु पर संभव है. पिता वही नहीं होते जो हमें जन्म देने का माध्यम बनते हैं, वे भी होते हैं जिन्हें हम पिता मान लेते हैं.
लेकिन जो रिश्तों और मुल्कों को बिल्कुल जड़ व्याख्या और मूर्ति तक सीमित रखते हैं, उनको ही यह बात समझ में नहीं आती कि कोई व्यक्ति किसी मुल्क का पिता कैसे हो सकता है. वे यह नहीं समझ पाते कि मुल्क जितना भूगोल में होते हैं, उतना हमारी चेतना में भी बनते रहते हैं. यही व्यक्तियों का भी सच है. व्यक्तियों की पहचान भी कई बार हमारी चेतना में इतनी बड़ी हो जाती है कि वे एक बड़े मूल्य का, कभी-कभी पूरे मुल्क का प्रतीक बन जाते हैं.
राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ यह बात समझता है कि भारत और गांधी एकाकार हो चुके हैं. भारत से प्रेम की बात करने वाले गांधी से नफ़रत की बात नहीं कर सकते. इसलिए उसकी पार्टी बीजेपी प्रज्ञा ठाकुर को माफ़ी मांगने पर मजबूर करती है. लेकिन सच यह है कि इस भारत से भी उसे प्रेम नहीं है. इस देश की सांस्कृतिक बहुलता उसे परेशान करती रही है, एक दौर में उसके झंडों का तीन रंग उसे चुभा करता था. यह इस देश की लोकतांत्रिक मजबूरी है कि वह अपने मूल विचारों को स्थगित रखती है और सत्ता के लिए गांधी से लेकर अंबेडकर तक का नाम जपने में संकोच नहीं करती.
गांधी अगर पिता भी हैं जो ज़रूरी नहीं कि उन्हें पूजा जाए. अच्छे पिता पूजे जाने के लिए नहीं, तर्क करने के लिए होते हैं. गांधी को पिता कहने वाले सुभाष चंद्र बोस उनसे बहुत दूर तक असहमत रहे. गांधी को महात्मा कहने वाले टैगोर असहयोग आंदोलन को संदेह से देखते रहे और गांधी को कहना पड़ा कि कवि अपनी कल्पना के अलग संसार में रहता है. गांधी को गुरु मानने वाले जवाहरलाल नेहरू ने उनके 'हिंद स्वराज' से अपनी गहरी असहमति जताई.
बाद के दौर में कांग्रेस जैसे-जैसे गांधी से दूर होती गई, वह उनकी मूर्ति बनाकर उनकी पूजा करने लगी, जैसे इससे उसके पाप धुल जाएंगे. फिर गांधी पर सवाल करने का, गांधी से सवाल करने का चलन ख़त्म होता गया. संघ परिवार गांधी से डरता था, फिर उसने भी जान लिया कि गांधी की पूजा करने से उसके पाप छुपे रहेंगे. संकट यह है कि उसकी वैचारिकी से प्रशिक्षित होकर निकले लोग अचानक गोडसे की मूर्तियां बनाते दिखते हैं, कभी उसे देशभक्त बताते नज़र आते हैं और कभी गांधी पर कीचड़ उछालते मिलते हैं.
लेकिन ऐसी हरकतों पर बीजेपी के नेता जिस डरे हुए अंदाज़ में अपना बचाव करते हैं, उससे पता चलता है कि गांधी उन्हें कितना डराते हैं. सच तो यह है कि यह देश गांधी की संतानों का है, उनके मानस पुत्रों का है- इसे गोडसे की औलादें नहीं बदल सकतीं.
प्रियदर्शन NDTV इंडिया में सीनियर एडिटर हैं..https://khabar.ndtv.com/news/blogs/priyadarshans-comment-godses-children-are-scared-of-gandhis-children-2039163?pfrom=home-khabar_tajataren

Saturday, May 11, 2019

मां के सामने बेटा बना कुत्तों का न‍िवाला, कुछ म‍िनटों में गई जान


छह साल का मासूम कुत्तों के झुंड के बीच खुद को बचाने की गुहार लगा रहा था. मां के सामने ही आवारा कुत्ते मासूम को नोंचते रहे. जब तक लोगों की मदद से आवारा कुत्तों के झुंड को भगाया, तब तक बच्चे के शरीर में हर जगह कुत्तों के जहरीले दांत गड़ चुके थे. बच्चे की अस्पताल ले जाते समय रास्ते में ही मौत हो गई. यह द‍िल दहलाने वाला वाकया मध्य प्रदेश के भोपाल का है. (प्रतीकात्मक फोटो)

भोपाल में अवधपुरी इलाके के शिव संगम नगर में शुक्रवार शाम घर के बाहर खेल रहे छह साल के मासूम को आवारा कुत्तों ने मां के सामने ही नोंच-नोंच कर मार डाला. बच्चे के शरीर का कोई हिस्सा ऐसा नहीं बचा, जहां कुत्तों के जहरीले दांत न गड़े हों. (प्रतीकात्मक फोटो)

बच्चा चीखता रहा और कुत्ते उसे करीब 20 फीट दूर तक खींच ले गए. बच्चे की आवाज सुनकर परिजन पहुंचे और जैसे-तैसे बच्चे को कुत्तों के चंगुल से छुड़ाया. उसके बाद अस्पताल ले गए, लेकिन रास्ते में ही बच्चे ने दम दोड़ दिया.(प्रतीकात्मक फोटो)


दिल दहला देने वाला ये वाकया सोडरपुर, सिलवानी के हरिनारायण जाटव के बेटे संजू के साथ हुआ. बताया जा रहा है कि अवधपुरी इलाके में रहने वाली महिला ने पिछले महीने महीने एक बच्चे को जन्म दिया था और सर्जरी की वजह से रेस्ट पर थीं. शाम को जब उनके पति घर वापस लौटे तो दूसरे बच्चे के बारे में पूछा. महिला घर से बाहर निकलीं तो देखा कि घर से 300 मीटर की दूरी पर बच्चे को आवारा कुत्तों के झुंड ने घेर रखा है.शुक्रवार शाम छह बजे वे घर लौटे तो संजू नहीं दिखा. पत्नी सावित्री ने बताया कि 15-20 मिनट पहले ही खेलने निकला है. उसके बाद मां ने घर से निकलकर बेटे को आवाज लगाई लेक‍िन उन्हें संजू तो नहीं दिखाई दिया, लेकिन नाले के किनारे 8-10 आवारा कुत्तों का झुंड नजर आया.

कुत्तों की गुर्राहट के बीच संजू की चीखें सुनाई दीं. कुत्तों को भगाने की कोशिश की तो उन पर भी लपक गए. वह चिल्लाते हुए घर की ओर दौड़ी और 'कोई मेरे बच्चे को बचा लो' की गुहार लगाने लगी. 

बच्चे के बाप हरिनारायण समेत कॉलोनी के लोग भी घर से बाहर निकल आए. कुत्तों को पत्थर मारकर भगाने में ही करीब 10 मिनट लग गए. जमीन पर खून से लथपथ मासूम संजू दर्द से कराह रहा था. संजू को पास के अस्पताल लेकर पहुंचे, जहां डॉक्टरों ने संजू को मृत घोषित कर दिया. संजू के शरीर का कोई ऐसा हिस्सा नहीं बचा जहां दांत न गड़े हों. 



चंडीगढ़ में आवारा कुत्तों ने डेढ़ साल के बच्चे को नोच-नोच कर मार डाला


हिमाचल में दर्दनाक हादसा, आवारा कुत्तों के झूंड ने 7 साल के बच्चे को नोच-नोच कर मार डाला

Tuesday, May 7, 2019

CBSE 10th में तरु जैन और अपूर्वा जैन प्रथम स्थान पर 499/500


सीबीएसई 10th के परीक्षा परिणाम में इस बार 13 विद्यार्थी Topper में है। इनमें जैन समाज की दो प्रतिभाशाली बेटियों ने भी 499 अंक प्राप्त कर प्रथम स्थान में जगह बनाई है। जयपुर की तरु जैन एवं गाजियाबाद की अपूर्वा जैन ने यह उपलब्धि हासिल कर पूरे जैन समाज को गौरवान्वित किया है।


गाजियाबाद : कड़ी मेहनत से हर मंजिल आसान हो जाती है, लेकिन वह ईमानदारी से होना चाहिए। यह कहना है सीबीएसई 10वीं बोर्ड की टॉपर अपूर्वा जैन का। उन्होंने परीक्षा में टॉप करके जिले का गौरव पूरे देश में बढ़ाया। उत्तम स्कूल फॉर ग‌र्ल्स से नर्सरी से पढ़ाई कर रहीं अपूर्वा ने परीक्षा में पांच सौ में 499 अंक हासिल कर टॉपर बनीं। उन्होंने अंग्रेजी, संस्कृत, गणित व विज्ञान में पूर्णांक हासिल किया जबकि सोशल साइंस में 99 अंक मिले। अपूर्वा ने अपनी सफलता का श्रेय मम्मी-पापा के अलावा शिक्षकों को देतीं हैं। आइआइटी से कंप्यूटर साइंस पढ़ना चाहती हैं

वह अपना कॅरियर इंजीनियर के रूप में बनाना चाहती है। आइआइटी से कंप्यूटर साइंस की पढ़ाई करना चाहती हैं। उनके पिता मनीष जैन एक बिजनेसमैन है, जबकि मां अंशु जैन गृहणी है। परिवार में बडे़ भाई अथर्व जैन इंटरमीडिएट की पढ़ाई कर रहे है। अपूर्वा का कहना है कि बड़े भाई ने पढ़ाई में काफी मदद की। उन्होंने पढ़ाई के दौरान कभी कोचिग नहीं ली। अपूर्वा का कहना है कि वह वह सामान्य तौर पर एक लक्ष्य बनाकर पढ़ाई करती थीं। पढ़ाई को उसने घंटों में कभी नहीं बांटा। आगे चलकर वह तकनीकी क्षेत्र में अनुसंधान करना चाहती है। इसके लिए वह अभी से आइआइटी में प्रवेश के लिए तैयारी शुरू कर दी है। वह सोशल मीडिया कम सक्रिय रहतीं हैं, वहीं वीडियो गेम खेलना अच्छा लगता है। बेटियों को लेकर बनाई गई फिल्म दंगल ने अधिक प्रभावित किया। अपूर्वा अपने परिवार साथ न्यू गांधी नगर में रहती हैं। फास्ट फूड खाना और यूट्यूब पर वीडियो देखना है पसंद

अपूर्वा कहती हैं कि पढ़ाई को बोझ नहीं समझें बल्कि एंज्वाय करें। अगर नियमित रूप से पढ़ने में कठिन मेहनत करती थी तो एंज्वाय करने और फ्रेश होने के लिए यूट्यूब पर वीडियो भी देखती हूं।


जयपुर। जयपुर की तरु जैन ने 500 में से 499 अंक लाकर सीबीएसई 10वीं में टॉप किया है। तरु ने इस सफलता का क्रेडिट अपने टीचर्स, फ्रेंड्स व फैमिली को दिया है। तरु ने कहा कि वह दिल्ली यूनिवर्सिटी से सीए करना चाहती है या इकॉनोमिक ऑनर्स करना चाहती हूं। उन्होंने कहा कि साेशल मीडिया से दूरी बनाए बगैर पढ़ाई की और यह मुकाम हासिल किया। तरु के पिता आईसीआईसीआई बैंक में चीफ मैनेजर (आई टी) हैं और मां नेहा जैन हाउस वाइफ हैं।

मैंने इतना एक्सपैक्ट नहीं किया था

तरु ने कहा, मैं इस बड़ी सफलता का क्रेडिट अपनी फैमिली, फ्रेंड्स व टीचर्स को देती हूं। मैंने इतना अच्छा परिणाम एक्सपैक्ट नहीं किया था। भविष्य में क्या करना है के बारे में पूछे जाने पर तरु ने कहा, मैं दिल्ली यूनिवर्सिटी से सीए करना चाहती हूं।

सोशल मीडिया से नहीं बनाई दूरी

तरु ने कहा कि वह आधे घंटे सोशल मीडिया पर एक्टिव रहती हैं।मैं कभी नहीं कहूंगी की सोशल मीडिया से पूरी तरह कटे रहें। यह रुटीन पढ़ाई के दौरान भी जारी रहा। मैंतीन-चार घंटे रोज पढ़ाई करती हूं।मेरी मैथ्स और स्टेटिक्स में हमेशा रुचि रही है। कई बार मुझे लगता है कि जो मैंने पढ़ा है उसे भूल जाती हूंं ऐसे स्थति मेंमेरे पेरेंंट्स मेरी मदद करते थे।

बेटी पर गर्व

तरु के पिता धर्मेंद्र जैन ने कहा उनकी बेटी ने न केवल माता-पिता का बल्कि राजस्थान का भी नाम रोशन किया है। उन्होंने कहा कि हमें 97 प्रतिशत तक की उम्मीद थी, लेकिन इतनी उम्मीद नहीं थी। धर्मेंद्र ने कहा कि आज गर्व महसूस हो रहा है, हम गौरवान्वित है। वहीं तरु की मां नेहा जैन ने कहा कि आज मुझे मेरी बेटी के नाम से जाना जा रहा है। इस खुशी को व्यक्त करने के लिए मेरे पास शब्द नहीं हैं। यह गर्व करने लायक है। उन्होंने बताया कि हमारा संयुक्त परिवार है और तरु सबके साथ घुलमिल रहती है।

वह पढ़ाई के साथ और कामों में भी रुचि लेती है। नेहा ने कहा कि तरु को सपोर्ट करने की ज्यादा जरूरत नहींं पड़ी। यह खुद परफेक्ट है। इस पर ज्यादा प्रेशर डालने की जरूरत नही है। उन्होंने कहा कि हम तरु के सपने करने के लिए उसके साथ हैं। उसे अपने फैसले लेने की पूरी आजादी है। वह आगे जो भी पढ़ाई या करियर के बारे में तय करेगी हम उसका पूरा साथ देंगे। आगे सब कुछ इसके ऊपर छोड़ रखा है।