Friday, December 23, 2016

600 साल पहले, चक्की में आटा पीसकर वृद्धा ने बनाया था - ये अनूठा जैन तीर्थ

जबलपुर। अब तक आपने एक से बढ़कर एक धार्मिक स्थल, कलाकृतियां और ऐतिहासिक धरोहरें देखी होंगी। लेकिन शायद ही किसी ऐसे स्थान को देखा हो, जिसे एक बुजुर्ग महिला ने चक्की में आटा पीसकर बनवाया है। उस तपस्वी महिला की अनुकृति आज भी यहां देखी जा सकती है। यह स्थान अपने आप में जितना अद्भुत है उतना ही आकर्षक भी...



वृद्धा की अनुकृति
एक विशाल प्रवेश द्वार के ऊपर चक्की के पाटों में पिसाई करती वृद्धा की अनुकृति सभी को आकर्षण में बांध लेती है। दरअसल, यहीं हैं पिसनहारी माता, इन्हीं के नाम से पूरा क्षेत्र पहचाना जा रहा है। जानकार मानते हैं कि पिसनहारी माता चक्की में आटा पीसकर उदर-पोषण करती थीं। जो राशि बचती थी, उससे राहगीरों को भोजना करा देती थीं। परमार्थ ही उनके जीवन का लक्ष्य था।

नंदीश्वर दीप यूं तो संस्कारधानी में अनेक जैन मंदिर हैं, लेकिन पिसनहारी की मढिय़ा का आकर्षण कुछ अलग है। पेड़ों की झुरमुटों के बीच मंदिर परिसर पर भगवान बाहुबली की 55 फीट ऊंची पाषाढ़ प्रतिमा स्थिरता व शांति का संदेश देती नजर आती है। वहीं 15000 वर्गफीट के व्यास और 11 सौ फीट ऊंचाई वाले नंदीश्वर द्वीप में भगवान शांतिनाथ एवं चंद्रप्रभु की खड्गासन प्रतिमाओं के साथ विराजित 132 प्रतिमाएं इसकी भव्यता को और बढ़ा देती हैं, जिसके आगे हर सिर श्रद्धा से झुक जाता है।

प्रात: व सायंकाल में वर्णी गुरुकुल से आतीं वेदपाठों की ऋचाएं माहौल में सम्मोहन घोल देती हैं। अद्भुत शिलालेखपिसनहारी मढिय़ा पर कुछ शिलालेख भी हैं, जिन्हें पढ़ पाना आज तक संभव नहीं हो पाया। विद्वानों का मत है कि शिलालेख 14 वीं शताब्दी के आसपास के हैं, जो इस बात का प्रमाण है कि पिसनहारी मढिय़ा क्षेत्र एतिहासिक है। मदनमहल का किला इसी पहाड़ी पर स्थित है, जो गोंड राजाओं के शौर्य की गाथा सुनाता नजर आता है।
करीब 600 वर्ष पूर्व एक तपस्वी उनके पास पहुंचे। उनके उपदेशों से प्रभावित होकर वृद्धा ने एक मंदिर बनवाने का संकल्प किया। दिन-रात पिसाई करके पूंजी जुटाई और मंदिर का सपना साकार किया। कालांतर में श्रद्धालुओं ने उनकी प्रतिमा यहां स्थापित करा दी। पाषाण की चक्कियों के माध्यम से श्रम साधना और संकल्प के विकल्प का संदेश देती माता पिसनहारी की अनुकृति लोगों को अभिभूत कर देती है।

 अनूठी गुफाएं पिसनहारी मढिय़ा पहाड़ी व आसपास अनेक गुफाएं हैं, जो इस बात का संकेत देती हैं कि यह क्षेत्र पहले से ही ऋषि-मुनियों की तपोस्थली रहा है। मढिय़ा परिसर पर आकर्षक झरने भी हैं, जो श्रद्धालुओं को आकर्षण में बांध लेते हैं।
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दंगल फिल्म रिव्यू: रेसलिंग में 'छोरियों' की दमदार कहानी, अखाड़े में छा गए 'पहलवान' आमिर

नई दिल्ली: एक्टर आमिर खान की फिल्म दंगल आज रिलीज हो गई। क्रिसमस से पहले रिलीज हुई इस फिल्म को तकरीबन सभी क्रिटिक्स ने जमकर सराहा है। यह फिल्म हरियाणा के पहलवान महावीर सिंह फोगट के जीवन पर आधारित है जिन्होंने अपनी बेटियों का अखाड़े में उतारकर उन्हें नामचीन पहलवान बनाया। आमिर की इस फिल्म का लंबे समय से इंतजार हो रहा था लेकिन जब यह फिल्म आई तो ऐसा लगता है बॉक्स ऑफिस पर छा जाएगी।

‘दंगल’हरियाणा के पहलवान महावीर सिंह फोगट के जीवन पर आधारित फिल्म है। एक बेटे के इंतजार में महावीर सिंह फोगट की चार बेटियां पैदा हो जाती हैं। वह निराश होता है क्योंकि उसने अपने बेटे को पहलवान बनाने का सपना संजोया होता है। समय बीतता है और इस बीच एक ऐसी घटना होती है जिससे महावीर अपनी बेटियों को पहलवान बनाने की ठान लेता है। फिल्म आगे बढ़ती है और महावीर अपनी बेटियों को पहलवान बनाने के लिए कड़ी ट्रेनिंग देता है। महावीर सिंह अपनी बेटियों गीता और बबीता को कुश्ती के गुर सिखाकर उन्हें रेसलिंग का चैंपियन बनाता है। उसकी बेटियां मेडल जीतकर तिरंगा लहराती है और उसकी खुशी का ठिकाना नहीं रहता। उसने यह सपना बेटे के जरिए देखा था लेकिन जब बेटा नहीं हुआ तो बेटियों ने ही अपने पिता का सपना पूरा कर दिखाया।  
दंगल फिल्म की बात सबसे जुदा है। दरअसल यह फिल्म कई मायनों में अलग कही जा सकती है। डायरेक्टर नितेश तिवारी ने फिल्म को कुछ इस तरह से बुना है जिसमें खेल, इमोशन, हास्य के रंगों के साथ रोमांच का भी बोलबाला है। फिल्म की स्क्रिप्ट बेहद कसी हुई है। शायद ही फिल्म में ऐसा कोई सीन हो जो आपको बोर करता हो। एक तरफ जहां फिल्म की कॉमिक टाइमिंग सटीक है तो दूसरी तरफ लाफ्टर डोज भी आपको खूब हंसाता है। साथ ही फिल्म में कई सीन इमोशनल भी है जो आपको रुला देंगे। फिल्म के संवाद दिल को छूते है जिसमें - 'मेडलिस्ट पेड़ पर नहीं उगते, उन्हें बनाना पड़ता है  प्यार से, मेहनत से, लगन से...'आदि शामिल है। फिल्म में रेसलिंग के कई सीन हैं जो दर्शकों को दिल थाम कर देखने को मजूबर हो जाता है। करीब दो घंटे 50 मिनट की इस फिल्म में आप कही भी बोरियत महसूस नहीं करेंगे।

फिल्म में आमिर खान ने एक बार खुद को साबित कर दिया है कि उन्हें मिस्टर परफेक्शनिस्ट यूं ही नहीं कहा जाता। सबको पता है कि आमिर खान ने इस भूमिका के लिए पहले वजन बढ़ाया और फिर घटा लिया। उन्होंने महावीर सिंह फोगट का किरदार इस तरह से निभाया है कि वह पर्दे पर जीवंत हो उठता है। उनकी अदाकारी फिल्म के हर सीन में सर चढ़कर बोलती है। फिल्म के सभी पात्रों का चुनाव काफी सोच समझकर किया गया है। गीता और बबीता के बचपन का रोल जायरा वसीम और सुहानी भटनागर ने किया है तो वहीं बड़े होने के बाद की भूमिका फातिमा सना शेख और सान्या मल्होत्रा ने किया है। दोनों ने अपनी भूमिका को दमदार तरीके से निभाया है और रिंस में रेसलर की भूमिका में पूरी तरह जंची है।
दंगल फिल्म में प्रीतम ने म्यूजिक दिया है और अमिताभ भट्टाचार्य ने गानों के बोल लिखे हैं। लगभग सभी गाने बहुत ही अच्छे और कर्णप्रिय बन पड़े हैं। ‘हानिकारक बापू’, ‘धाकड़’ और ‘गिल्हेरियां’ पहले ही काफी पॉपुलर हो चुके हैं। अरिजित सिंह की आवाज में एक गाना ‘नैना’ बेहद इमोशनल है जो आपको रूला जाता है।
कुल मिलाकर दंगल एक ऐसी फिल्म है जिसमें आपको खेल की पटकथा में एक ख्वाहिश देखने को मिलेगी। एक पहलवान की  ख्वाहिश कैसे एक दंगल में रेसलर का रुप लेती है, यह नीतिश तिवारी ने काफी अद्भुत तरीके से फिल्माया है। फिल्म की पकड़ कही भी कमजोर नहीं होती है। फिल्म ना सिर्फ मनोरंजक बल्कि प्रेरक भी है जो सिखाती है कि जीवन में इंसान ठान ले तो कुछ भी मुश्किल नहीं है। साथ ही फिल्म नारी शक्ति के बेहतरीन स्वरुप को भी दिखाती है कि बेटियों पर भरोसा किया जाए, उनका हौसला बढ़ाया जाए तो वह आपकी उम्मीदों पर खरी उतरती है और आपका नाम रोशन करती है। यह फिल्म एक पारिवारिक फिल्म है जिसे पूरे परिवार के साथ देखा जा सकता है। आमिर खान के फैंस के लिए तो यह फिल्म यकीकन एक 'धाकड़' फिल्म साबित होगी।


ज़ी मीडिया ब्‍यूरो 

Thursday, December 22, 2016

#Prediction: दंगल, बॉक्स ऑफिस पर 30 की ओपनिंग पर सुलतान को धोबीपछाड़! #Dangal #AamirKhan

आमिर खान स्टारर दंगल रिलीज़ होने वाली है और अब सलमान खान की सुलतान के साथ बॉक्स ऑफिस पर फिल्म की तुलना तय है। जानिए ट्रेड पंडितों ने फिल्म के लिए क्या तय किया है।

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दंगल 23 को रिलीज़ हो रही है और सबकी नज़रें हैं दंगल के रिकॉर्ड्स और बॉक्स ऑफिस कलेक्शन पर। कल ही आमिर ने सुबह 6 बजे फिल्म की स्पेशल स्क्रीनिंग रखी थी और सबको फिल्म काफी पसंद आई। फिल्म देखने के बाद सबसे आमिर ने पूछा कि फिल्म कितना कमाएगी।

फिल्म के डीओपी का कहना है कि फिल्म की ओपनिंग होगी 30 करोड़। वहीं ट्रेड पंडितों ने नॉन हॉलीडे को देखते हुए फिल्म के लिए 30 से 32 करोड़ की ओपनिंग तय की है।



दंगल की कमाई वीकेंड में उठेगी। वहीं दूसरी तरफ दंगल की सबसे अच्छी बात है फिल्म का बजट। फिल्म केवल 70 करोड़ के बजट पर बनी है। और आमिर ने ये माना  है कि फिल्म उतना तो कमा ही लेगी। 
वहीं ट्रेड पंडितों का मानना है कि फिल्म 205 करोड़ कुल कमाएगी। जो कि काफी कम है। इसलिए ये भी तय है कि फिल्म को लेकर सारे कयास गलत साबित होंगे। फिल्म का रिव्यू आ चुका है। दंगल का रिव्यू पढ़िए यहां। इसके बाद कौन फिल्म देखना नहीं चाहेगा।
इस बात में कोई दो राय नहीं है कि सलमान खान की सुलतान इस साल बॉक्स ऑफिस की सबसे कमाऊ फिल्म है। लेकिन इसके बावजूद फिल्म में बहुत कुछ ऐसा था जिसकी लोगों ने खिंचाई भी की। आप भी याद कर लीजिए सुलतान के ये डायलॉग्स जो हाजमोला से भी हज़म नहीं हुए थे।

बहरहाल, दंगल रिलीज़ हो रही है और आमिर खान ने खुद साफ किया कि वो चाहते हैं कि लोग सुलतान और दंगल में तुलना करें। क्योंकि तब फिर कम से कम वो दंगल देखने तो जाएंगे।
वैसे जानिए सुलतान सलमान और दंगल आमिर की बॉक्स ऑफिस टक्कर-

रिकॉर्ड बनाने को तैयार

बॉक्स ऑफिस पर इस साल का सबसे बड़ा सवाल ये है कि सुलतान या दंगल, कौन सी फिल्म इस साल की सबसे ज़्यादा कमाई करने वाली फिल्म होगी। जहां एक तरफ सलमान खान की सुलतान से रिकॉर्ड नहीं टूटे वहीं सब जानते हैं कि जब भी आमिर खान आते हैं, रिकॉर्ड पर रिकॉर्ड बनते हैं।

आमिर के तीन दांव

इस बार भी उनकी दंगल का पहला पोस्टर आते ही तहलका मच गया और फिल्म का बेसब्री से इंतज़ार हो रहा है। हालांकि फिल्म की तुलना सलमान खान की सलमान से काफी की गई। पर आमिर के तीन दांव सलमान खान को चित कर देंगे

सारी फिल्में Highest Grosser

पिछले कुछ सालों में जब भी आमिर की फिल्म आई है, उस साल की सबसे ज़्यादा कमाई करने वाली फिल्म बनी है - 3 इडियट्स, गजिनी, धूम 3,पीके।

सबसे ज़्यादा कमाने वाली फिल्में

आमिर खान की फिल्में, उस साल की ही नहीं, बॉलीवुड की सबसे ज़्यादा कमाने वाली फिल्में साबित हुईं। एक ऐसा रिकॉर्ड जो सुपरस्टार होने के बावजूद सलमान के पास नहीं है।

हमेशा नया ट्रेंड

आमिर की हर फिल्म ने नया ट्रेंड शुरू किया। गजिनी का 100 करोड़ हो, 3 इडियट्स का 200 करोड़, धूम 3 का 250 करोड़ या पीके का 300 करोड़!

8 साल से चल रही टक्कर

एक टक्कर है जो पिछले आठ साल से चल रही है और अब दंगल - सुलतान के साथ शायद आगे बढ़ेगी। दरअसल, सुलतान इस साल की सबसे बड़ी फिल्म बन चुकी है, जब तक दंगल नहीं आती, तब तक। क्योंकि पिछले 8 सालों से आमिर खान और सलमान खान के अलावा किसी ने साल की सबसे बड़ी फिल्म नहीं दी है।

हर साल सबसे बड़ी फिल्म

आमिर - सलमान के अलावा अगर किसी ने साल की सबसे बड़ी फिल्म थी तो वो थी ओम शांति ओम, जो 8 साल पहले आई थी। इसके बाद से सलमान - आमिर आपस में ही भिड़ते रहते हैं।

स्कोर है बराबर

दोनों ने अब तक 4 - 4 साल की बड़ी फिल्में दी हैं। यानि कि आमिर और सलमान दोनों का ही स्कोर फिलहाल बराबर है। लेकिन जंग अभी भी बरकरार है सुलतान और दंगल के साथ।

सबसे बड़ी फिल्में

अभी तक की सबसे बड़ी फिल्में थीं - 2007 - ओम शांति ओम, 2008 - गजिनी, 2009 - 3 इडियट्स, 2010 - दबंग, 2011 - बॉडीगार्ड, 2012 - एक था टाइगर, 2013 - धूम 3, 2014 - पीके, 2015 - बजरंगी भाईजान।

23 को दंगल

इसलिए आंकड़े तो यही कहते हैं कि इस साल सलमान खान की सुलतान को आमिर खान की दंगल से पटखनी मिलना तय है। बाकी तो बस इंतज़ार है - दंगल का!


http://hindi.filmibeat.com/box-office/dangal-box-office-prediction-058172.html

Wednesday, December 14, 2016

जैन परिवार ने सारे राष्ट्र के सामने एक शानदार मिशाल पेश की....!! बेटी की शादी में व्यापारी ने बेघरों को 90 मकान तोहफे में दिये

कर्नाटका के रेड्डी बन्धुओं की 500 करोड़ की लगत की भारी-भरकम खर्च के विवाह से लेकर सूरत के अनसूचित जाति के मारू दम्पति द्वारा महज 500 रुपए के खर्च में सम्पन्न की गई शादी के आयोजनों तथा अहमदाबाद में राष्ट्र गान के साथ प्रारम्भ हुए शादी के समारोहों की खबरे विभिन्न न्यूज चैनलों पर खूब प्रसारित हुई है,

लेकिन महाराष्ट्रा के ओरंगाबाद के लासुर कस्बे में एक धन कुबेर व साधन सम्पन्न परिवार द्वारा पूर्ण सादगी के साथ संपन्न की गई एक ऐसी अनोखी शादी की सर्वत्र सराहना हो रही हैं, यह वो चर्चित शादी हैं जहां होने वाले भारी-भरकम खर्च को बचा कर उसकी एवज में लगभग दो एकड़ भूखण्ड पर 90 मकानों की एक कालोनी का निर्माण कर उन मकानों की चाबियाँ गरीबों व जरूरत मंदों को सौंप दी, यह प्रेरक एंव अनुकरणीय पहल महाराष्ट्रा के ओरंगाबाद जिले के लासुर कस्बे में वहां के कपड़ा व अनाज व्यवसाही श्री अजय मुणोत (जैन) ने अपनी सपुत्री श्रेया मुणोत की शादी समारोह में की,




बताया जाता हैं कि श्रेया की शादी में उनके आदर्श व दरियादिल पिता का माला के 108 मनकों जितने 108 मकान गरीबों को तोहफे में देने का इरादा था, लेकिन शादी के मुहूर्त की अवधि में कुल 90 मकान ही तैयार हो पाए, विशेष व उल्लेखनीय बिन्दु यह भी हैं कि वन रूम किचन के ये 90 मकान महज 2 महिने में ही तैयार किए गए हैं, 

मुणोत परिवार द्वारा उपरोक्त 90 मकान गरीबों को सौंपने हेतु तीन तरह की कसौटियां तय की गई थी, इसके चयन हेतु मुणोत परिवार के सदस्यों ने झुग्गी झोपडी में रहने वाले गरीबों की बस्ती में जाकर इस कसोटी पर खरे उतरने वाले गरीबों का चयन किया था, जिसमें निम्न अर्हताएं तय की गई थी, (1) मकान प्राप्त करने का इच्छुक व्यक्ति गरीब होना चाहिए (2) वह व्यक्ति झोंपड़े में रहने वाला हो (3) तथा वो किसी तरह का नशा न करता हो, अपने परिवार द्वारा लिए गए इस निर्णय पर दुल्हन श्रेया का कहना हैं कि उनके परिवार का मानना हैं कि गरीबों की मदद करनी चाहिए, बस इसी विचार से गरीबों को घर बना कर सौंपे हैं, बताया जाता हैं कि 12×20 के इन पक्के मकानों में दो दरवाजा, दो खिड़कियां हैं, व लाइट फिटिंग तथा रंग-रोगान भी कराया गया हैं, यहां तक प्रत्येक मकान में फिल्टर पानी भी उपलब्ध रहेगा जिसकी व्यवस्था अजय मुणोत ने की हैं,

प्रति मकान सवा लाख रुपया की लागत आई हैं, तथा कुल खर्च लगभग डेढ़ करोड़ के करीब बताया जा रहा है, मुणोत परिवार के इस निर्णय को श्रेया के पति बादल जैन भी उचित बता रहे हैं, यह उल्लेखनीय हैं कि मुणोत परिवार के लासुर में नाना प्रकार के व्यवसाय हैं, जिसमें कपड़ा व अनाज का व्यापार प्रमुख हैं, व उनके पास 60 एकड़ विशाल जमीन भी हैं, 

यह उल्लेखनीय हैं कि शादी के खर्चे में कटौती कर उस पैसा का सदुपयोग करने की इच्छा जब अजय मुणोत ने अपने पारिवारिक सम्बन्धी एंव गंगापुर के विधायक श्री प्रकाश बम्ब को बताई तो उन्होंने उपरोक्त रकम का उपयोग गरीबों को मकान बना कर नियोजित करने की सलाह दी जो कि श्री अजय मुणोत को पसन्द आ गई, तथा इस सुझाव के अनुसार ये 90 मकान तैयार करा कर गरीबों को सौंप भी दिए, 

काश श्री अजय मुणोत की तरह हर अमीर पिता अपने पुत्र-पुत्रियों की शादी में कुछ खर्च बचा कर उपरोक्त राशी गरीबों व जरूरतमंदों के उपयोगार्थ खर्च करें तो भगवान महावीर के 'दया' 'करुणा' 'अहिंसा' व 'जीओ और जीने दो' के आदर्श सिद्धांतों की पालना हो सकती हैं, व हर गरीब का सपना साकार हो सकता हैं।
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लिपिबद्ध-गणपत भंसाली, सूरत
Jasolwala@gmail.com
साभार-दैनिक भास्कर
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नोटबंदी के इस दौर में डेढ़ लाख में हो गई शादी, मेन्यू जानकर हैरान रह जाएंगे आप!

बेंगलुरु: बेंगलुरु से तक़रीबन 30 किलोमीटर दूर बनरगट्टा रोड पर बने श्री आशापुरा माताजी धाम में लगभग 12 बजे धूमधाम से घोड़ी चढ़कर दूल्हा पहुंचा. समां कुछ ऐसा बंधा था जैसे कोई खर्चीली शादी हो लेकिन जैसे ही हम गेट पर पहुंचे तो  पता चला कि शादी सिर्फ एक लाख इक्यावन हज़ार में हो रही है.





इतने से कम रुपये में शामिल मेन्यू को सुनकर तो आप और दंग रह जाएंगे. इसमें 250 लोगों का 3 वक़्त का खाना, ढोल बाज, पंडित, शादी और रिसेप्शन का पंडाल, घोड़ी, वर माला, 10 एसी कमरे वर-वधू के परिवार के लिए और शहर से यहां तक बाराती और घरातियों को लाने के लिए 2 बस. इतना ही नहीं, खाने में पकवानों की कोई कमी नहीं, दक्षिण के इडली डोसा से लेकर राजस्थान की गूंथा मेथी से लेकर बंगाली रसगुल्ले और काजू बर्फी तक.



सस्ती शादी का आयोजन जैन समाज के एक ट्रस्ट की तरफ से किया जा रहा है जिसका नाम है आशापुरा माता भंडारी जैन ट्रस्ट मंडल. इसके सचिव पारस मल भंडारी से मैंने पूछा कि आखिर इतने सस्ते में इस महंगाई के ज़माने में आप निपटाते कैसे हैं.



उनका जवाब था कि ट्रस्ट की तरफ़ से विवाह और रिसेप्शन मंडल दिया जाता है. साफ़-सफाई, बिजली, पानी इसका खर्च ट्रस्ट नहीं लेती और साथ-साथ जैन सम्प्रदाय की धार्मिक मानयताओं के तहत सारा कर्यक्रम सूर्यास्त से पहले होता है यानी जेनटर और साज-सज्जा पर आने वाला खर्च भी बच जाता है. ऐसे में बड़ा खर्चा सिर्फ खानपान का है. ट्रस्ट का कैटरर के साथ अनुबंध है कि साल में कितनी शादी वो करवाएंगे. ऐसे में मिला-जुलाकर नोटबंदी के इस दौर में लोगों को काफी रहत मिल रही है.



दुल्हन के चाचा ने बताया कि समाज में इतने कम रुपये में शादी की बात सुनकर उन लोगों को पहले तो यकीन नहीं हुआ फिर अब जब शादी धूमधाम से हो गई तो भरोसा नहीं हो रहा कि इतने कम खर्च में भी शादी हो सकती है. वो भी तब जब नोटबंदी की वजह से 2500 रुपये के लिए घंटों लाइन लगना पड़ता है. भले ही शादी के लिए ढाई लाख रुपये मिल जाये. लड़के वाले खुश हैं कि पैसे काम खर्च हुए तो ऐसे में बचे हुए पैसे का इस्तेमाल वधु के लिए गहने में किया जाएगा जो कि आगे चलकर उनके काम आएगा.

See Video 

http://khabar.ndtv.com/news/bengaluru/marrige-took-place-in-just-1-51-lakh-menu-will-surprize-you-1637162

Wednesday, December 7, 2016

प्राइम टाइम इंट्रो- जयललिता : तमिलनाडु की जनता ने हकीकत से किया साक्षात्‍कार

आख़िर तमिलनाडु की जनता ने उस हकीकत से साक्षात्‍कार कर ही लिया, जिसका वो पिछले 74 दिनों से सामना करने का हिम्मत जुटा ही नहीं पा रही थी. जयललिता के निधन का ऐलान उनके समर्थकों और वहां की जनता ने जिस साहस और उदारता के साथ स्वीकार किया है, उसका प्रमाण आपको राज्य में पसरी उदासी के बीच उस शांति से मिल जाएगा, जिसके भंग हो जाने की आशंका में तमिलनाडु की पुलिस दिन-रात चौकस खड़ी थी. ज़रूर वहां की पुलिस ने साहसिक काम किया होगा.



यह भी इसलिए संभव हो सका होगा कि वहां की पुलिस अपने राज्य की जनता को बेहतर समझती होगी. जयललिता इस दुनिया में नहीं है. अब सिर्फ उनके किस्से हैं. मृत्यु की गरिमा का अंदाज़ा उसे स्वीकार करने वाले लोगों से होता है. जयललिता को अंतिम विदाई देने आए कई लाख लोगों ने अपनी नेता को अनुशासित विदाई देकर उनकी मौत को गरिमा ही प्रदान की है. समर्थकों के सैलाब की तरफ से जयललिता को इससे बेहतर श्रद्धांजलि नहीं हो सकती है.

टीवी का कैमरा सिर्फ तस्वीरों को दिखा सकता है, बता नहीं सकता है कि उन लाखों लोगों के दिलों पर क्या बीत रही होगी. मन में क्या कुछ चल रहा होगा. बस चुपचाप चलते हुए लोग ही नज़र आते हैं. राजाजी हाल से मरीना बीच की दूरी दो किमी से ज्यादा नहीं है. इस अंतिम सफर को अम्मा के समर्थकों ने इतिहास में लंबे समय तक के लिए यादगार बना दिया. उन्होंने कोई हंगामा नहीं किया.

हम समझ सकते हैं कि किस मुश्किल से लाखों के सैलाब ने अपने भावनात्मक उफ़ान पर काबू में किया होगा. बहुत मुश्किल होता है अंतिम यात्रा के वक्त किसी शख्सियत से आपको रूबरू कराने का. हम समझते हैं कि जयललिता ने अपनी ओर से भी सत्ता का वही गढ़ रचा, किला खड़ा किया. जिसके कायदे उसी दुनिया से लिये गए थे जिससे बग़ावत कर वो जयललिता बनी थीं. उस हिसाब का वक्त नहीं है ये.

हमें किसी राजनेता के बनने की प्रक्रिया को भी समझना होगा और राजनेता से नायक और महानायक में बदलने को भी समझना होगा. इस तरह की दीवानगी, ऐसा भरोसा, कोई और हासिल नहीं कर पाता है. राजनीतिक विरोध, अपमान, आरोप, जेल, विस्थापन ये सब एक राजनेता ही झेलता है. वो सत्ता पाता है तो वही है जो सत्ता से बेदखल किया जाता है. पब्लिक के बीच इतना तल्ख इम्तेहान राजनेता के अलावा कोई नहीं देता है. इसलिए राजनेता लोगों के दिलों में राज करता है. खासकर वो लोग जो दशकों तक एक बड़े तबके में अपने प्रति भरोसे को बनाए रखते हैं. वही लोग हैं जो उत्तर में लोकनायक बन जाते हैं, दक्षिण में अम्मा बन जाते हैं. कोई बापू बन जाता है, कोई नेता जी बन जाता है. कोई बाबा साहब बन जाता है कोई कोई पंडित जी बन जाता है.

समंदर ने आज एक और समंदर का सामना किया है. मरीना बीच पर लाखों लोगों की मौजूदगी जयललिता को विदाई देने नहीं आई थी. बल्कि वो अपनी यादों के लिए जयललिता को लेने आई थी. पुलिस और सुरक्षा बलों ने चेन्नई की सड़कों को भर दिया.

अतीत के आईने में 24 दिसंबर 1987 की तस्वीरों में देखा जाए तो राजा जी हाल में एमजीआर का पार्थिव शरीर रखा हुआ है. जयललिता पास में खड़ी हैं. इस जगह की कहानी जयललिता के बनने की कहानी है. 1987 में जयललिता ने यहां जिस अपमान का सामना किया था उसका किस्सा हम आगे बतायेंगे. एमजीआर का परिवार नहीं चाहता था कि जयललिता राजा जी हाल में घुस सकें. जयललिता किसी तरह घुसती हैं और तेरह घंटे तक वहां खड़ी रहती हैं. आज उसी राजा जी हाल में जयललिता का पार्थिव शरीर रखा हुआ था. एक तरह से सियासी कहानी जहां से शुरू होती है वहीं ख़त्म हो जाती है. नियति में जो यकीन रखते हैं वो इस किस्से को ज़माने तक याद रखेंगे.


राजा जी हाल में जयललिता के पार्थिव शरीर के साथ तीस सालों से उनकी सहयोगी शशिकला अपने परिवार के साथ मौजूद थीं. तीसरी बार मुख्यमंत्री बने पनीरसेल्वम अपनी नई कैबिनेट के साथ मौजूद थे. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी चेन्नई पहुंच कर श्रद्धांजलि दी और शशिकला को ढाढस बंधाया.

मुख्यमंत्री सेल्वम प्रधानमंत्री का हाथ थाम रोने ही लगे. पीएम मोदी काफी देर तक रुके भी. राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने भी अंतिम विदाई दी. उसके बाद रजनीकांत आए. आम लोग भी उनका अंतिम दर्शन करते रहे. कांग्रेस नेता राहुल गांधी और गुलाम नबी आज़ाद ने भी श्रद्धांजलि दी.

राजा जी हॉल का अपना एक इतिहास है. 1757 के प्‍लासी युद्ध की जीत का जश्न ब्रिटिश हुकूमत ने यहीं मनाया था. अंग्रेज़ों की सेना ने टीपू सुल्तान को हरा कर यहीं जश्न मनाया था. के कामराज का पार्थिव शरीर भी अंतिम दर्शन के लिए यहीं रखा गया था. इसी हॉल से जयललिता की कहानी का एक नया सियासी अध्याय शुरू होता है. आज जयललिता का पार्थिव शरीर इस हाल में रखा गया. अन्नादुरई, एमजीआर की समाधि के साथ जयललिता की समाधि बनेगी. द्रविड़ राजनीति के तीन हस्ताक्षर यहां मौजूद हैं.

अन्ना द्रमुक का जनरल सेक्रेट्री कौन होगा. उनका सियासी वारिस कौन होगा. यह सब आने वाले वक्त में अन्नाद्रमुक के भीतर का सियासी उफान तय करेगा. पनीरसेल्वम को साढ़े चार साल सत्ता संभालनी है. शशिकला क्या करेंगी इस पर भी सबकी नज़र होगी. दसवीं पास थीं जयललिता. सैनिक अनुशासन वाले माहौल में पली बढ़ीं. अकेलापन उनका साथी रहा. जिस पार्टी की नेता बनी उसका इतिहास ईश्वर की सत्ता को नामंज़ूर करने का रहा है, लेकिन जब 24 जुलाई 1991 में जयललिता मुख्यमंत्री पद की शपथ लेती हैं तो ईश्वर के नाम से शपथ लेती हैं. उससे पहले द्रविड़ नेता प्रकृति और अंतरात्मा के नाम पर शपथ लेते थे. ये जानकारी मेरी नहीं है बल्कि वासंती जी की है जिन्होंने जयललिता पर किताब लिखी है और उनके निधन पर इंडियन एक्सप्रेस में एक लेख.

मरीना बीच पर उनकी दोस्त शशिकला ने अंतिम संस्कार की प्रक्रिया पूरी की. ब्राह्मण जाति में पैदा हुईं, ब्राह्मण विरोधी पार्टी का नेतृत्व किया लेकिन उन्हें दफनाया गया. जाति और धर्म के बीच इस नेता की मौजूदगी और सिंबल को समाजशास्त्री लंबे समय तक अध्ययन करते रहेंगे. इंडियन एक्सप्रेस ने छापा है कि एक अधिकारी ने बताया था कि वो जाति और धर्म से परे थीं. द्रविड़ नेताओं को दफनाया ही जाता है. हम मौत के बाद उन्हें जलाते नहीं है.

मरीना बीच पर उनके जाने की ख़बर लोग ज़ब्त कर चुके थे. जयललिता अब दफ़न हैं. मगर उनका किस्सा अभी कुछ दिनों के लिए तमिलनाडु के घर-घर में कहा जा रहा होगा, सुना जा रहा होगा. सब कुछ शांति और आदर के साथ हो गया. जयललिता की विदाई के साथ तमिलनाडु की जनता एक नए दौर में प्रवेश करती है. वो एक फिल्म के रिलीज होने पर अभिनेता के पोस्टर को दूध से नहला देती है. लोग उसे पागल दीवाना समझते हैं. वही जनता इतनी सादगी के साथ अपने नेता को विदा करके चली आती है. जानकारों के पास हैरत के अलावा कोई और शब्द नहीं है.
http://khabar.ndtv.com/news/blogs/tamilnadu-people-faces-truth-of-jaylalithaa-death-1634815

Monday, September 19, 2016

फिटनेस टिप: कब्ज़ की परेशानी से छुटकारा दिलाएंगे ये योगासन

गलत खान-पान और जीवनशैली के कारण हमारे शरीर की पाचन शक्ति कमज़ोर हो जाती है. इस वजह से कब्ज़ की शिकायत होती. लेकिन इस समस्या को हल करने का सबसे आसान उपाय है योग.

योग के ऐसे 3 आसन हैं, जिन्हें हर रोज़ करने से कब्जियत दूर हो जाती है. सबसे खास बात यह, कि इनके लिए न तो किसी खास प्रशिक्षण की ज़रूरत होती है, न ही इन्हें करना  मुश्किल होता है.
  • भुजंगासन

इस आसन को करते हुए शरीर फन उठाए हुए सांप की तरह दिखता है. इसलिए इसे भुजंगासन कहते हैं. पीठ दर्द दूर करने, रीढ़ की हड्डी को लचीला बनाने के अलावा यह  शरीर की पाचन शक्ति भी दुरुस्त करता है. इस आसन से पेट की चर्बी भी कम होती है.

भुजंगासन करने का तरीका
पेट के बल लेटकर पैरों को सीथा और लंबा फैलाएं. हथेलियों को कंधों के नीचे ज़मीन पर रखें और माथा को जमीन से सटाएं. अब सांस अंदर लें और धीरे-धीरे सिर और कंधे को  ज़मीन से ऊपर उठाइये और पीठ को पीछे की ओर झुकाएं. इस स्थिति में 20-30 सेकेंड रुकें, फिर धीरे धीरे सामान्य स्थिति में सांस छोड़ते हुए वापस आ जाएं. 
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टिप: सिर और पीठ को तेज़ी से नहीं, बल्कि धीरे धीरे मोड़ें. हर्निया, हाइपर थायरॉयड और पेट दर्द की शिकायत हो, तो यह आसन न करें.
  • वक्रासन (अर्ध मत्स्येंद्र आसन)

वक्र का अर्थ होता है टेढ़ा. इस आसन में शरीर सीधी और गर्दन टेढ़ा रहता है. इसलिए इसे वक्रासन भी कहते हैं. वक्रासन से लीवर, किडनी, पैनक्रियाज प्रभावित होते हैं जिससे शरीर का मेटाबॉलिजम दुरुस्त होता है. 

वक्रासन करने का तरीका
दोनों पैरों को सामने फैलाकर बैठें और दोनों हाथ बगल में रखें. कमर सीधी रखें. अब दाएं पैर को घुटने से मोड़कर लाएं और बाएं पैर के घुटने की सीध में रखें. इसके बाद दाएं  हाथ को पीछे ले जाएं और रीढ़ की हड्डी के बराबर रखें. कुछ देर इसी स्थिति में रहने के बाद अब बाएं पैर को घुटने से मोड़कर यह आसन करें. इसके बाद बाएं हाथ को दाहिने पैर के घुटने के ऊपर से क्रॉस करके जमीन के ऊपर रखें. गर्दन को धीरे-धीरे पीछे की ओर ले जाते हुए ज्यादा से ज्यादा पीछे की ओर देखने की कोशिश करें. इसी तरह यह  योगासन दूसरी तरफ से दोहराएं. 

टिप: पीछे रखा गया हाथ कोहनी से सीधा रखते हुए मेरुदंड से 6 से 9 इंच के बीच में ही रखें और जब एक पैर को घुटने से मोड़कर लाये, तब दूसरे पैर का घुटने की सीध में होना जरुरी है. 



3.पश्चिमोत्तासन

इस योगासन में शरीर के पश्चिम भाग यानी पीछे के भाग (पीठ) में खिंचाव होता है, इसलिए इसे पश्चिमोत्तासन कहते हैं. मेरूदंड के सभी विकार जैसे- पीठदर्द, पेट के रोग, लीवररोग, और गुर्दे के रोगों को दूर करता है. इसके अभ्यास से शरीर की चर्बी होती है और मधुमेह का रोग भी ठीक होता है. इस आसन से गर्भाशय संबंधी समस्याएं भी दूर  होती हैं. 

पश्चिमोत्तासन करने का तरीका
चौकड़ी लगाकर बैठें और सांस लेते हुए दोनों हाथों को ऊपर ले जाएं. अब सांस छोड़ते हुए कमर से पैरों की ओर झुकें,हाथों से तलवों को पकडें. ऐड़ियों को आगे बढ़ाएं और शरीर के ऊपरी भाग को पीछे की ओर ले जाने की कोशिश करते हुए आगे की ओर झुकें. इस मुद्रा में 15 सेकेंड से 30 सेकेंड तक बने रहें.

टिप: शुरुआत में इस योगासन को करते वक्त घुटनों की नसों में तनाव के कारण पैरों को सीधा ज़मीन पर टिकाना मुश्किल हो सकता है. इसलिए आप कंबल को मोड़कर उसपर बैठें. मेरूदंड (रीढ़) की हड्डियों में खिंचाव हो इस बात का ख्याल रखते हुए जितना संभव हो आगे की ओर झुकने की कोशिश करनी चाहिए.

अगर मुमकिन हो, तो इन तीनों योगासनों को सुबह के वक्त करें। योगासन साफ चटाई और खुले वातावरण में करें। 

http://khabar.ndtv.com/news/lifestyle/yoga-poses-to-get-relief-from-constipation-1458579